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पारिकता दीख पडी, कही देश-भक्ति व स्वार्थ का विचित्र सगम "देखा, कही अधिकार - लिप्सा और पद-लोलुपता के दर्शन हुए, पर सत्यनारायणजी कही दृष्टिगोचर नही हुए । मैं अब भी उनकी तलाश मे हूँ | मै नही तो कोई दूसरा ही उनका पता लगाएगा, क्योकि --
कालोय निरवधिविपुलाच पृथ्वी ।
फीरोजाबाद
१२ । १२ । १६२६
बनारसीदास चतुर्वेदी