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अध्याय "मेरी तीर्थयात्रा" ध्यान से पढ जाइये। जबतक किसी चरित:लेखक को चरित्र-नायक के साथ इतनी गहरी हादिक सहानुभूति न हो-- उसपर ऐसी अशिथिल श्रद्धा न हो, तबतक इस प्रकार का चरित्र लिखा ही नहीं जा सकता। उक्त अवतरणो के उद्धरण से यहां यही दिखाना इष्ट है।
परमात्मा दया करके 'भारतीय हृदय' का-सा विशाल, सहानुभुतिपूर्ण और प्रेमी हृदय हम सबको भी प्रदान करे, जिससे हम लोग अपने साहित्य-सेवियों का सम्मान करना सीखे और अपने सन्मित्रो की स्मृति और कीतिरक्षा के लिये इनके समान प्रयत्नशील हो सके।
चतुर्वेदीजी ने सत्यनारायण के अनेक मित्रो को कीर्तिशेष, स्वर्गीय मित्र के गुणगान-द्वारा वाणी और हृदय पवित्र करने का अवसर देकर उन पर एक बड़ा उपकार किया है। मैं चतुर्वेदीजी का कृतज्ञ हूँ कि मुझे भी उन्होने इस बहाने सत्यनारायण की याद में 'चार ऑसू' बहाने का मौका देकर अनुगृहीत किया। ___ मै प्रत्येक सहृदय साहित्यप्रेमी मे इस जीवनी की राम-कहानी पढने की सानुरोध प्रार्थना करूंगा।
काव्यकुटीर, नायक नगला, पो० चॉदपुर, (बिजनौर) कातिक सुदि ७, स० १९८३ वि०
पसिंह शर्मा