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लगों, अतः वे इनमें भी बाधा डालने लगे। वे आपको गृहस्थ बनाना चाहते थे, परन्तु आप आत्म कल्याण पथ के पथिक बन रहे थे।
यह संघर्ष चलता रहा। इस संबन्ध में आपको कई बार बड़े २ कष्ट सहने पड़े। आपने कई बार गृह त्याग किया किन्तु पकड़े गए। आखिर आपने निश्चय किया, -"यदि आत्मारामजी महाराज दीक्षा न देंगे तो प्रभु मू के सामने दीक्षा ले लूँगा।" .संवत् १६४३ में श्री आत्मारामजी महाराज का 'पालीताने में चौमासा था। आप भी बडोदे से भाई साहिब की आज्ञा लेकर पालीताना पहुँचे। चातुर्मास भर वहीं रह कर अध्ययन किया। : आत्मारामजी महाराज विहार करके राधनपुर पधारे। आप भी साथ ही थे। वहां से आपने अपने भाई साहिब के नाम एक चिट्ठी इस आशय की भेजी कि "अमुक दिन मेरी दीक्षा होने वाली है।" भाई साहिब पहुँचे । देखा, वहाँ ऐसी कोई बात न थी। आचार्य महाराज से वृतांत 'पूछा तब पता लगा कि आपको अपने भाई को दीक्षा की आज्ञा देने के लिए ही यहां बुलाया था।
आपके भाई आपको लाने के लिए पहुंचे थे। किन्तु धर्म में आपको श्रद्धा, लगन, झुकाव आदि देख कर वे भी
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