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( ५२ ) उठे--"गुरु महाराज की आज्ञा शिरोधार्य ! ,हम शिक्षा संस्था के लिए सब कुछ करने को तैयार हैं।"
आपने कहा--"यदि तुम्हें गोड़वाड़ भर में शिक्षा प्रचार करना हो और जैन समाज का मस्तक उन्नत करना हो, तो तैयार हो जाओ। तुम्हारे गांव से एक लाख रुपया होजाना चाहिए।" आपका कथन लोगों ने स्वीकार कर लिया और एक लाख अठाईस हज़ार तक फंड इकट्ठा कर लिया।
आपके उपदेश का आशातीत प्रभाव हुआ। आपको विश्वास होगया कि सादड़ी के लोग जरूर कुछ करने वाले हैं।
इतना काम होजाने पर वे अब आप को छोड़ कैसे सकते थे? आप का चातुर्मास सादड़ी में ही हुआ। तथा श्वेताम्बर जैन कान्फ्रेन्स का अधिवेशन भी आपकी कृपा से सादड़ी में ही हुवा। . आपके शिष्य पंन्यासजी श्री सोहनविजयजी तथा मुनि
श्री ललितविजयजी आदि ६-७ साधु भी जिनको आपने पाली (मारवाड़) भेज दिया था, आपकी सेवा में आगये। आपका चौमासा सादड़ो में और उनका बाली में हुआ।
बाली में मुनि श्री ललितविजयजी, मुनि श्री उमंग विजयजी तथा मुनि श्री विद्याविजयजी का भगवती सूत्र का योग पंन्यासजी श्री सोहनविजयजी ने कराया और
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