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के लुटजाने की बात सारे भारत भर में पवन की तरह फैल गई। श्रावक व्याकुल हो उठे। हजारों श्रावक सेवा में उपस्थित हुए और हज़ारों के खेद सूचक पत्र आने लगे। जोधपुर महाराजा साहब के पास भी कई तार पहुंचे। . उस समय जोधपुर के प्रबन्धक सर प्रतापसिंहजी थे। इन तारों से उनको आश्चर्य हुआ। उन्होंने अपने विश्वस्थ आदमियों से पूछा--"ये कौन साधु हैं, जिनके लुटजाने से सारे भारत में हलचल मच गई है।" - उत्तर मिला-"गरीब परवर ! जैनियों के लिए तो ये अद्वितीय महापुरुष हैं।" : सर प्रतापसिंहजी ने पुलिस को कड़ी आज्ञा दी कि वह चोरों को तत्काल गिरफ्तार करले। बड़ी कोशिश के बाद पुलिस उनमें से एक आदमी को गिरफ्तार कर सकी। वह सरकारी गवाह बन गया और उसने सब दूसरे चोरों को पकड़वा दिया।
चोरों पर बाकायदा मुकदमा चला और आप से प्रार्थना की गई कि आप इनके बारे में क्या कहना चाहते हैं ? आपने उत्तर दिया कि "जाने दो, मुझे इनके विरुद्ध कुछ भी नहीं कहना है । इनको छोड़ दिया जाय ।"
- आपके इस कथन को सुन कर 'धन्य ! धन्य । की ध्वनि चारों ओर छागई।
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