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( १३८ ) सफल हुई और पुस्तक पुनः छपी। जेठ सुदि ८ को गुरू महाराज की जयन्ती मनाई गई।
बड़ौदा में भी श्री चरणविजयजी महाराज का रोग शान्त न हुआ। खंभात के श्रीसंघ को संदेह हुआ कि आप चातुर्मास के लिये कहीं बड़ौदा में ही न रह जायें। अतः वे पुनः विनती के लिये बड़ौदा आये। श्री चरणविजयजी महाराज को बड़ौदा श्रीसंघ की देख रेख में छोड़ा
और आचार्य श्री विजयकस्तूरमूरिजी, श्री मित्रविजयजी तथा श्री विशुद्धविजयजी महाराज को वैयावच्च के लिये उनके पास रहने दिया। आपने खंभात की ओर प्रस्थान किया। वाजवा, वासद, बोरसद, जारोला, वटादरा होकर आप खंभात के पास सकरपुरा के कसबे में पधारे। वहां श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ और श्रीसीमंधर स्वामीजी का एक रमणीक और प्राचीन मंदिर है। खंभात का संघ यहां आया। पूजा पढ़ाई गई और स्वामीवत्सल भी हुआ। इस प्रसंग पर आचार्य श्री विजयनेमिमूरिजी महाराज के शिष्य आचार्य श्री विजयलावण्यमूरिजी खंभात से पधारे। परस्पर मिलन और वार्तालाप से अच्छा लाभ हुआ।
आषाढ़ वदि १२ (ता० ५ जुलाई) को आप खंभात में पधारे। श्रीसंघ ने अच्छा सत्कार किया। श्री लावण्यसरिजी के साधु महाराज भी प्रवेश के जुलूस में साथ ही थे।
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