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(१६८) इसका सब श्रेय पंन्यासजी महाराज श्री. समुद्रविजयजी गणि को है।
चातुर्मास शीघ्र ही शुरू होने वाला था। उधर आपने जो महान कार्य करना ठान रक्खा था और जिसके लिये एकदम १००० मील से अधिक लंबा खंभात से अम्बाला शहर तक का विहार किया था, एक दो दिन के विश्राम से पूर्ण होने वाला न था। अतः आपने इस वर्ष (१९६५) का चातुर्मास अम्बाला शहर में ही किया। इस चातुर्मास में आपकी प्रेरणा से कई सत्कार्य हुये। कॉलेज के लिये अम्बाला शहर के भाइयों ने चन्दा दिया और अभी यह काम चल ही रहा है। आशा है कि शीघ्र ही आचार्य महाराज के कथनानुसार यह राशि ५० हजार तक पहुँच जायगी। आपके उपदेश से यहां पहले पहल श्री जगद्गुरु विजयहीरसूरि महाराज की जिन्होंने अकबर बादशाह को उपदेश देकर जैनधर्म और हिन्दूधर्म की उन्नति के अनेक उपाय किये थे, जयन्ती मनाई गई। इसी प्रकार गुर्जराधीश कुमारपाल को प्रतिबोध देने वाले कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्यजी का जयन्ती महोत्सव भी पहली बार ही मनाया गया। - अब इस चातुर्मास की समाप्ति पर श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब की मीटिंग होने वाली है, जिससे
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