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( १६६) इस अवसर पर एक बड़े महत्व की बात हुई जिसका उल्लेख करना आवश्यक है। बहुत वर्ष हुये एक अजैन विद्वान् श्रीस्वामो योगजीवानन्दजी सरस्वती ने स्वर्गीय श्री विजयानन्दमूरिजी महाराज की विद्वत्ता पर मुग्ध होकर एक मालाबद्ध श्लोक उनकी सेवा में अर्पित किया था और लिखा था कि इस चार पंक्ति के श्लोक के ५१ अर्थ हो सकते हैं परन्तु अर्थ करके नहीं भेजे थे। श्री आत्मानन्द जैन महासभा (पंजाब) ने श्री आत्मानन्द शताब्दि पर पूज्यनीय श्री आचार्य महाराज श्री विजय वल्लभ मूरिजी महाराज के उपदेश से भारतवर्ष के विद्वानों का ध्यान इस श्लोक की तरफ आकर्षित किया और उस विद्वान् की सेवा में जो इस श्लोक के ५१ अर्थ अथवा इससे बढ़कर अधिक से अधिक अर्थ करे, २५१) रुपये भेंट करने की घोषणा की। कुछ विद्वानों ने परिश्रम भी किया। अम्बाला शहर के ही एक विद्वान् पं० बैजनाथ शास्त्री ने इस श्लोक के ८० के लगभग अर्थ कर दिये और निरीक्षक महानुभावों ने इन्हीं को इस भेंट को प्राप्त करने का अधिकारी ठहराया।
अतः अर्द्ध शताब्दि के दिन सभापति श्री सकरचन्द ने उपरोक्त पुरस्कार की रकम उक्त विद्वान् को भेंट करके आपने अपने विद्या प्रेम का परिचय दिया। इसके अतिरिक्त आपने २५००) रुपये कॉलेज होस्टल के हॉल के
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