Book Title: Kalikal Kalpataru Vijay Vallabhsuriji ka Sankshipta Jivan Charitra
Author(s): Parshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
Publisher: Parshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur

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Page 147
________________ ( १३६ ) २५००) सेठ कीकाभाई प्रेमचंदजी। २०००) सेठ रतिलाल नत्थुभाई। २५००) बाबू भगवानदास पन्नालालजी। १५००) सेठ गिरधरलाल त्रीकमजी। १५००) सेठ जीवाभाई राधनपुर वाले। ७५०) सेठ मोतीलाल निहालचंदजी। ५००) सेठ चन्दूलाल साराभाई मोदी। ५००) सेठ फूलचंद शामजी । इस प्रकार १५ दिन के अरसे में ही आचार्य महाराज के उपदेश से इतनी राशि होगई। यही कॉलेज के संस्था को भावि सफलता का संकेत समझना चाहिये। यह बात पहले कही जा चुकी है कि श्री चरणविजयजी की बीमारी के कारण ही खंभात में अधिक ठहरना हुआ। बड़ौदा राज्य के सब से बड़े डॉक्टर प्राण सुखलालजी खंभात आकर इलाज करते रहे। खंभात के श्रीसंघ ने भी सेवा भक्ति में कोई खामी नहीं रक्खी परन्तु रोग शांत न हुआ। डाक्टर महोदय ने रोगी महात्मा को बड़ौदा लेजाने की सलाह दी। .. इस मौके पर खंभात के श्रीसंघ ने बड़े जोर-शोर से चातुर्मास के लिये विनती की और कहा कि श्री मंदिरजी के जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। अतः आप खंभात में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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