Book Title: Kalikal Kalpataru Vijay Vallabhsuriji ka Sankshipta Jivan Charitra
Author(s): Parshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
Publisher: Parshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur

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Page 158
________________ (१४७ ) श्वरजी पधारे। यहां पर राधनपुर से सेठ कांतिलाल ईश्वरलाल और सागर के उपाश्रय के ट्रस्टी महानुभाव, ६०, ७० के लगभग सजन विनतो के लिये आये । यहां से आगे राधनपुर के पास ही श्रीमान् सेठ मोतीलाल मूलजी के बंगले में जाकर ठहरे। पाटण से पधारे हुये मुनि श्री उत्तमविजयजी, विद्वद्वर मुनि श्री पुण्यविजयजी, श्री बसंतविजयजी और श्री रमणीक विजयजी महाराज यहां मिले । . पौष सुदि ५ बुधवार २२ दिसंबर १६३७ को आपका बड़ी धूम धाम से नगर प्रवेश हुआ। सारा राधनपुर नगर अद्भुत ढंग पर सजाया गया था। नवाब साहिब के मकान से लेकर मंडप तक, शहर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक, झंडियां लग रही थीं। और ठौर पर दरवाजे बनाये गये थे और जैनाचार्यजी की स्तुति और जैन धर्म के सिद्धांतों के द्योतक मोटो लग रहे थे। मंडप की रचना बोर्डिंग हाऊस के साथ में ही की गई थी। वहां की शोभा अलौकिक थी । ज्यों २ आचार्य महाराज आगे बढ़ते जाते थे, स्थान स्थान पर खरे मोतियों और अशर्फियों से गहुँलियां की जाती थीं। इस धूम धाम में एक यह भी रहस्य था कि आप की दीक्षा भी राधनपुर में ही हुई थी और आप अब कई वर्षों के -पश्चात् यहां पधार रहे थे। अतः लोगों को आपका स्वागत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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