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( १५८) आचार्य महाराज की बाट अतीव उत्सुकता से देखी जाने लगी। बहुत दिनन की जोवती, बाट तुम्हारी 'राम' ।
जी चाहे त्तव मिलन को, मन नाहिं विश्राम ॥ __ ताः १८ जून १६३८ को प्रातः काल श्री आचार्य महाराज ने अम्बाला शहर के बाहर एक कोठी में विश्राम किया और चातक की भांति पंजाबी भाईयों के प्यासे नेत्रों को अपने दर्शनामृत से तृप्त किया। दो दिन तक आप वहां ठहरे। इतने में बाहर देश-देशान्तरों से श्रद्धालु श्रावक निरन्तर आते रहे और हजारों की संख्या में गुरु-भक्त एकत्रित हो गये। गुरु महाराज के दर्शन कर सब ने अपना जीवन सफल किया । ।
ताः २० जून को प्रातः काल सभापति महोदय अहमदाबाद निवासी श्रेष्ठवर्य श्री कस्तूरभाई लालभाई, बंबई निवासी श्रीयुत् सेठ कान्तिलाल ईश्वरलाल, श्री रतिलाल वाड़ीलाल, श्री सकरचन्द मोतीलाल मूलजी आदि सज्जन पधारे। रेल्वे स्टेशन पर उनका अत्यंत सन्मान पूर्वक स्वागत किया गया और जनता बैंड बाजों के साथ एक जुलूस के रूप में बड़े २ बाज़ारों में से होते हुये उस स्थान पर पहुँची, जहां से श्री आचार्य महाराज का जुलूस चलने 'वाला था। उपरोक्त सेठ महानुभाव हाथी से उतर कर
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