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(१४८) करते हुये विचित्र हो आनंद आरहा था। इतने लंबे समय के पश्चात् आपके पुनः दर्शन कर वे सब लोग अपने जीवन को सराह रहे थे। बोर्डिङ्ग हाउस से होकर आप सागर के उपाश्रय में पधारे। श्री विजयवीर सूरिजी के शिष्य पंन्यासजी श्री लाभविजयजी महाराज तथा श्री विजयसिद्धि मूरिजी के शिष्य श्री विजयभक्ति मूरिजी से भी मिलाप हुआ। जुलूस के समय सेठजी की प्रार्थना पर जब आप उनके मकान पर पधारे, सेठजी ने खरे मोतियों और स्वर्ण-मुहरों से गहुली की थी और आपके करकमलों से (आपकी कृपा-सूचक) वासक्षेप को ग्रहण किया था। .. इस उत्सव के अवसर पर राधनपुर निवासी श्री सकरचंद मोतीलाल मूलजी आदि अनेक सेठ महानुभावों के अतिरिक्त और भी अनेक सेठ साहिबान, और विद्वान लोग पधारे थे। उम्मेदपुर बालाश्रम से श्रीमान् सेठ गुलाबचंदजी ढडा और विद्यार्थी भी उत्सव में सम्मिलित हुये। अंबाला शहर (पंजाब)के श्री आत्मानन्द जैन हॉई स्कूल के विद्यार्थो भी अपने अध्यापकों के साथ उत्सव की शोभा बढ़ाने का कारण बने । बालाश्रम को सेठजी की तरफ से छः सात हजार की सहायता भी प्राप्त हुई। 2, पौष सुदि ८ को मंडप में उद्घाटन क्रिया हुई। दोनों सरफ कुर्सियों पर बहुत से श्रीमान् सेठ तथा सेठ काति
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