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( १३९) बोरसद के मुख्य श्रावक जेठालाल कालीदास आदि चातुर्मास के लिये यहां भी विनती करने आये। उनका अति आग्रह होने से और लाभ जानकर पंन्यासजी श्री समुद्रविजयजी और श्री सत्यविजयजीको बोरसद में चातुमास के लिये भेजा। __ खंभात के चातुर्मास में आचार्य श्री के साथ श्री विजय ललितसरिजी महाराज, श्री प्रभाविजयजी, श्री शिवविजयजी, श्री विकासविजयजी, श्री विक्रमविजयजी और श्री वीरविजयजी थे।
इस चातुर्मास में प्रायः संवत्सरी के बाबत ऊहापोह होती रही। आखिर बहु सम्मति से निर्णय किया गया। श्री मंदिरजी की नींव वैशाख सुदि २ ता० १२ मई बुधवार को रक्खी गई। काम भी बहुत जन्दी होगया। ताः २६ जुलाई को श्री प्रतिमाजी का नये मंदिर में प्रवेश कराया गया और २ अगस्त को प्रतिष्ठा संबन्धी अहाई महोत्सव शुरू हुआ। ___ ता.३ अगस्त को गुजरांवाला से वृद्ध मुनि श्री स्वामी सुमतिविजयजी के स्वर्गवास का तार मिला । देव वंदन आदि योग्य क्रिया की गई। उनके मिलने की बहुत समय की अभिलाषा मन में ही रह गई।
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