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( ६८ ) वे खुशी से सहमत हुए तो हम आजायेंगे। मगर हमें आशा नहीं, वे हमें फिर तत्काल मारवाड़ आने दें।
गोड़वाड़ के पंचों ने फिर विनीत भाव से प्रार्थना की कि गुरुदेव ! एक वर्ष के लिये भी आप श्रीजी मारवाड़ की ओर पधार आयें तो हमारा अहोभाग्य है, किन्तु वृद्ध महापुरुषों की सहमति के अभाव से आप इस चौमासे में नहीं पधार सकें तो पंन्यासजी श्री ललितविजयजी महाराज को अवश्य भेजने की कृपा करें। आप श्रीजो ने प्रसन्नता-पूर्वक फरमाया- "हां, भाई ! यह ठीक है। हम ललितविजयजी को भेजने का प्रयत्न करेंगे। किन्तु शर्त उसमें यह है कि तुपको इसी चातुर्मास में विद्यालय का चंदा कराने के लिए बाहर जाना होगा। इस बात की तुम दृढ़ प्रतिज्ञा करो तो ललितविजयजी को यहां भेजने का प्रयत्न करें। "सबने सहर्ष हाथ जोड़कर प्रतिज्ञा की।"
इस आदेश को सुनकर मारवाड़ वासियों के दिल बाग बाग होगए। आप श्री जी शिवगंज, सिरोही होते हुए आबू पधारे। यहां की यात्रा करते हुए पालनपुर होकर आप पाटन पधारे। पाटन में आपका शानदार जुलूस निकला जो सैकड़ों वर्षों में लोगों ने नहीं देखा था।
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