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बड़े विद्या प्रेमी थे । आपने वरकाणा के श्री पार्श्वनाथ जैन विद्यालय की स्थापना में अमूल्य सहायता दी थी और श्री आचार्य महाराज के दर्शनों के लिये उत्कंठित हो रहे थे। बीजोवा तक आने की शक्ति भी आपमें न रह गई थी । अतः श्री आचार्य महाराज ने उनकी उक्त दर्शन पिपासा को शांत करने के लिये वरकाणाजी ही पधारने का कष्ट उठाया । अपने अंतिम समय में सिंघीजी आचार्य महाराज के दर्शन करके अपने जीवन को धन्य समझने लगे और थोड़े ही समय पश्चात् उसी रोज उनका यह नश्वर शरीर छूट गया ।
आपका चातुर्मास बीजोवा में ही हुआ । मारवाड़ी भाइयों ने आपके विश्राम का पूर्ण लाभ लिया और थोड़े समय पहले स्थापित श्री पार्श्वनाथ जैन विद्यालय, वरकाणा - संस्था को पुष्ट करने में योग्य सहायता प्रदान की, जिसके फल स्वरूप अब वह संस्था मारवाड़ में बड़ी अच्छी संस्थाओं में से एक समझी जाती है और प्रति दिन उन्नत दशा को प्राप्त हो रही है । वैशाख सुदि ३ को मुनि श्रो विशुद्ध विजयजी, श्री विकाशविजयजी तथा श्री विक्रम विजयजी की बड़ी दीक्षा आपकी अध्यक्षता में पंन्यासजी महाराज श्री ललितविजयजी के हाथ से बीजोवा में हुई ।
पश्चात् रानी गाँव, खीमेल, सांडेराव होकर आप खुडाला में पधारे । ज्येष्ठ सुदि ८ को सदा की भांति गुरु
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