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(१२५) आदि को आमोद भेजने की कृपा की। आप सूरत में पधारे। सूरत से भरुच होकर आपने सीनोर की ओर 'विहार किया। रास्ते में झगडियाजी की यात्रा का सुअवसर प्राप्त हुआ। आनन्द पूर्वक यात्रा करके आप सीनोर पधारे।
. यहां आपका श्री आत्मारामजी महाराज के शिष्य वयोवृद्ध श्री अमरविजयजी से मिलाप हुआ। यहां आपके लैक्चर भी हुये। यहां से डभोई के रास्ते से आप बड़ौदे पधारे। बड़ौदा श्री संघ ने वहीं शताब्दि उत्सव मनाने के लिये फिर विनती की। आपने उत्तर दिया कि 'हमारा भाव तो पाटण में श्रीप्रवर्तकजी श्री कान्तिविजयजी महाराज के पास हो यह उत्सव मनाने का है। यदि वे यहां पधारें अथवा उनकी सम्मति हो तो बड़ौदे में ही उत्सव करने का विचार किया जायगा।' ग्रामानुग्राम विचरते हुए आप अहमदाबाद पधारे। पंन्यासजी श्री समुद्रविजयजी तथा श्री मुनि विशुद्धविजयजी महाराज भी आमोद में प्रतिष्ठा कराके
आपसे आकर मिल गये। । यहां से आप साबरमती में पधारे। कारण वशात्
और बड़ौदा के श्रीसंघ के विशेष आग्रह से आप शताब्दि उत्सव निमित्त बड़ौदा पधारे। मारवाड़ी श्रावक श्रीयुत् पुखराजजी की विनती से आप आकुंतपुरा (बड़ौदा शहर
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