Book Title: Kalikal Kalpataru Vijay Vallabhsuriji ka Sankshipta Jivan Charitra
Author(s): Parshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
Publisher: Parshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur

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Page 144
________________ ( १३३ ) पालन किया अर्थात् कमेटी ने यह प्रस्ताव पास किया कि श्री आचार्य महाराज के यहां खंभात में ठहरने तक चूहे आदि कोई जीव न मारे जावेंगे। प्रवेश के दिन तो कसाईयों ने भी अपना काम बंद रख कर यशोपार्जन कर लिया। ऐसा पहले तो कभी सुनने में भी न आया था। प्रवेश के दिन ज्ञान मंदिर के उद्धार के लिये उपदेश दिया गया जिसके लिये चंदा होना शुरु हो गया। खंभात में भी जैसलमेर की तरह जैन भण्डार देखने योग्य हैं। वहां भी बहुत सी अमूल्य पुस्तकें भण्डारों में बंद पड़ी हैं । यद्यपि खंभात में बहुत दिन ठहरने का भाव न था तथापि मुनि श्री चरणविजयजी की बीमारी के कारण यहां रुकना पड़ा। श्री चरणविजयजी एक जीर्ण प्रायः जैन भंडार को देखने गये थे। वहां अधिक देर हो जाने के कारण आपके निर्बल स्वास्थ्य को क्षति पहुँची। योग्य उपचार होने लगा, परन्तु रोग दिनों दिन बढ़ता ही गया और शान्ति न हुई, इसलिए अधिक समय खंभात में रहना पड़ा। ' बड़ौदा शताब्दि के पश्चात् आप जहां कहीं पधारे, वहां आपने उचित समय पर शताब्दि महोत्सव की तरह श्री आत्मारामजी महाराज की जन्म तिथि का उत्सव मनाया। खंभात में भी ऐसा ही किया गया। यहां का उत्सव श्री मुनि चरणविजयजी के प्रयन से यहां के दीवान साहिब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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