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विजयजी, श्री मित्रविजयजी, श्री प्रभाविजयजी, श्री चरणविजयजी प्रभृति बहुत से मुनिराज विराजमान थे । अहमदाबाद के कुछ सेठ महानुभाव भी जो पदवी प्रदान के समय वहां आये हुए थे, आचार्य महाराज श्री विजयललित सूरिजी तथा श्री विजयलाभसूरिजी महाराज से चातुर्मास के लिये प्रार्थना करने लगे । उनकी प्रार्थना स्वीकृत हुई । यहां से श्री आचार्य प्रवर बड़ौदे पधारे। जेठ सुदि को आत्म- जयन्ती वहां बड़ौदे में ही मनाई गई । तदनन्तर आचार्य श्री विजयललितसूरिजी, श्री समुद्रविजयजी तथा श्री प्रभाविजयजी, सोमविजयजी को अहमदाबाद जाने के लिये आज्ञा प्रदान की ।
बड़ौदा शहर का जानीफोरी का उपाश्रय जीर्ण प्रायः हो चुका था । चातुर्मास में श्री आचार्य महाराज ने उपाश्रय के लिये उपदेश दिया। श्रीसंघ ने नया उपाश्रय बनवाने का संकल्प कर लिया। उन दिनों में वहां उपधान तप भी हुआ। उस तप के उद्यापन में 'माला' के समय उपाश्रय के लिये अपील हुई जिसमें अंबाला निवासी लाला गंगारामजी के सुपुत्र लाला बनारसीदासजी ने उपाश्रय के लिये ५००) रुपये दान दिये, और भी भाईयों ने दिल खोल कर चंदा दिया । शनैः २ उपाश्रय के लिये २० हज़ार की राशि हो गई ।
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