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( १२९ ) तीर्थङ्कर भगवान महावीर स्वामी अपना उपदेश इसी भाषा में दिया करते थे। श्री आत्मारामजी महाराज के शुभ कार्यों की गणना करते हुये मुनि श्री चरणविजयजी ने जनता को बतलाया कि शताब्दि उत्सव की स्मृति में पुस्तक और ग्रंथ तैयार कराये जायेंगे और ७ ग्रंथ तो तैयार हो भी चुके हैं।
जैनाचार्य श्री विजयवल्लभमूरिजी महाराज के इस शुभ महोत्सव की पूर्णाहुति रूप, व्याख्यान से उत्सव की सपाप्ति हुई। शताब्दि की सफलता में उनकी शुभ कामना और उनका प्रोत्साहन ही कारण रूप हैं। ऐसे उत्सवों से जागृति उत्पन्न होती है। अतः ऐसे उत्सव अधिक से अधिक बार होते रहने चाहियें।"
[बड़ौदा २४ जौलाई सन् १९३६ ] - इस उत्सव की सफलता प्राप्ति में पंन्यासजी महाराज श्री ललितविजयजी ने भी श्री आचार्य महाराज श्री विजयवल्लभ सूरिजी महाराज का हाथ बटाया था। आपकी गुरु-भक्ति तो अनुकरणीय और दूसरों के लिये आदर्श रूप है ही, प्रत्युत थोड़ा सा भी आपके सम्पर्क में आने वाला व्यक्ति आपकी विद्वत्ता और कार्य-कुशलता की मुग्ध कण्ठ से प्रशंसा किये बिना नहीं रहता। आप बड़े अनुभवी और दूरदर्शी हैं, शान्ति और परोपकार की मूर्ति हैं । शताब्दि
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