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( १२१ ) महाराज के पास पाटण में यह महोत्सव मनाने का विचार स्थिर किया। परन्तु बड़ौदा श्रीसंघ ने जो सदा से धार्मिक कार्यों में अग्रगण्य रहा है, यह आग्रह किया कि यह महोत्सव उन्हीं के नगर में हो तो उन पर बड़ा उपकार होगा। अभी कोई निर्णय न हुआ था। __ . आप वहां से विहार कर मियांगांव पधारे। आपके प्रशिष्य मुनि श्री चरणविजयजी की तबीयत्त कुछ नरम हो गई। अतः आपको कुछ काल वहीं रुकना पड़ा। यहां से 'पालेज होते हुवे भरुच पधारे जहां बीसा श्रीमाली जैनों की बस्ती है। पास ही बेजलपुर में लाडवा श्रीमाली जैनों के घर हैं। इन दोनों स्थानों के जैनों में परस्पर वैमनस्य था। वे एक दूसरे के धर्म कार्यो-स्वामी-वत्सल तक में भी शामिल न होते थे। आपके सदुपदेश से वैमनस्य दूर होगया। परस्पर मेल होने के पश्चात् लाड़वा श्रीमाली भाइयों ने स्वामी-वत्सल किया जिसमें सब के सब बीसा श्रीमाली भी बड़े आनंद से सम्मिलित हुये। यहां से आप सूरत पधारे। प्रत्येक उपाश्रय में आपका व्याख्यान हुआ। विशेष विनती करके आपको नेमभाई की काड़ी में भी ले गये। वहां भी आपका व्याख्यान हुआ।
नवसारी, बिल्लीमोरा, बलसाड़ होकर आप बंबई गये। माघ सुदि १० को आपके कर कमलों से आप ही
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