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विनती करने आये । कारण वहाँ श्री महावीर जैन विद्यालय के श्री जिन मंदिर की प्रतिष्ठा होने की आवश्यकता थी । उसके कारण तथा अपनी आँख का आपरेशन कराने के अभिप्राय से बंबई जाने का विचार हुआ । कपेड़वंज में मुनि श्री हिम्मतविजयजी, पंन्यासजी श्री नेमविजयजी, श्री उत्तमविजयजी, श्री चंदन विजयजी बड़ौदे से और पाटण से मुनि श्री पुण्यविजयजी, श्री रमणीकविजयजी आदि आकर मिले। कपड़वंज में उस अवसर पर ३ श्राविकाओं ने दीक्षा ली। दीक्षा के पश्चात् मुनि श्री विद्याविजयजी हिमांशुविजयजी आदि भी आये ।
कपड़वंज से विहार कर बड़ौदा पधारे। जहां २ भी आप भ्रमण करते थे, शताब्दि महोत्सव के लिये लोगों को तैयार करते जाते थे। लोगों ने भी दिल खोल कर इस फंड में चंदा दिया। बड़ौदे में श्री मूलचंदजी महाराज की जयन्ती मनाई गई ।
शताब्दि महोत्सव मनाने के दिन निकट आ रहे थे। यद्यपि आप यह अनुभव करते थे कि यह महोत्सव श्री गुरु महाराज के जन्म स्थान लेहरा ( पंजाब ) में होना चाहिये, तथापि यह विचार करके कि उस समय तक पंजाब में न पधार सकेंगे और अन्य मुनिराजों के लिये भी वहां पहुँचना असंभव है, आपने श्रीमद् प्रवर्त्तकजी श्री कान्तिविजयजी
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