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स्थान कलकत्ता निवासी बाबू गयकुमारसिंहजी मुकीम ने स्वीकार किया। ता० ५ दिसम्बर के शाम की बैठक में सेठ विट्ठलदासजी भी बंबई से अधिवेशन में शरीक होने के लिये आ पहुँचे । ता०६ को प्रातःकाल व्याख्यान के समय सर्व साधारण सभा की बैठक हुई। इस प्रसंग पर आचार्य श्री ने गुरुकुल के सम्बन्ध में सुन्दर उपदेश दिया। दानवीर सेठ विट्ठलदासजी ने ५ वर्ष के गुरुकुल के मकान के किराये के लिये दस हजार रुपये प्रदान करने की उदारता दिखलाई और साथ ही गुरुकुल के लिये स्थान निश्चित होने पर मकान फंड में उचित रकम देने की भावना प्रगट की, जिससे सभा में धन्य-धन्य की आवाज गूंजने लगी।
ता० ७ दिसम्बर को व्याख्यान के समय लाला मंगतरामजी (अंबाला) ने पंजाबी भाइयों की ओर से आचार्य श्री से उनके पंजाब से मारवाड़, गुजरात को यात्रा पर विहार करने के कारण पुनः शीघ्र वापिस पंजाब पधारने, पंजाबियों को न भूलने, गुरु महाराज के वचन 'पंजाब को वल्लभ संभालेगा' को ध्यान में रखने तथा बंबई जैसे शहर में श्रीमानों और दानवीरों के प्रलोभन में पंजाब को न भूल जाने की प्रार्थना की और 'हमारी नाव पार करना आपके हाथ है' इन दिल हिला देने वाले शब्दों में विनती
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