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पंन्यासजी श्री ललितविजयजी ने यहां श्री पार्श्वनाथ जैन विद्यालय स्थापित किया था, उसकी उन्नति के लिए आपने यहीं चातुर्मास किया। इस चौमासे में अनेक ग्राम व नगरों से सैकड़ों नरनारी आये। इसलिए इस विद्यालय की fia पुख्ता हो गई।
इस समय आपके दर्शनार्थ पंजाब का श्रीसंघ, पंजाब जैन गुरुकुल, मारवाड़ का संघ और वरकाणा विद्यालय, श्री महावीर जैन विद्यालय तथा पालनपुर विद्यालय और गुजरात के अनेक शहरों के सद्गृहस्थ भी हाजिर हुए थे ।
पाटन के श्री संघ ने मेहमानों की जो सेवा सुश्रूषा की वह चिरस्मरणीय रहेगी ।
चौमासे के बाद आपने पंन्यासजी श्री ललितविजयजी आदि शिष्य परिवार के साथ पाटन की तर्फ विहार किया । राणी स्टेशन पर गोड़वाड़ के पंच श्रावक मिले। आप श्री जी खीमेल की तर्फ पधार रहे थे । 'मंगलिक' सुनाने का समय आया । सकल संघ विनीत भाव से प्रार्थना करता रहा कि " पाटन पधार कर एक वार इधर अवश्य पधारें ।” आपने फरमाया हमारे पूजनीय प्रवर्त्तकजी श्री कान्तिविजयजी महाराज एवं श्री शान्तमूर्ति हंसविजयजी महाराज वहां विराजमान हैं, उनको हम पूछेंगे | अगर
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