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( ७६ ) दिनों लार्ड करजन ने बंगाल को २ भागों में विभक्त कर दिया था। अतः बंगाली लोग साधु सन्तों के वेष में क्रान्ति फैला रहे थे। पुलिस के ऑफिसर ने आपको नंगे पैर, नंगे शिर, साधु वेष में देखकर संदेह किया कि शायद ये बंगाली हों! और लोगों को भड़काते हों। उन्होंने पता लगाया, तो मालूम हुआ कि ये जैनी साधु कंचन कामिनी के त्यागी हैं। ये तो केवल धर्मोपदेश देने के लिये हो विचरा करते हैं। इन बातों से वाकिफ़ होते हुए भी पुलिस ऑफिसर ने आपके व्याख्यान में गुप्तचर लगा ही दिये।
पं. दोनदयालजी तिवारी मुन्सिफ साहेब ने उन गुप्तचरों को सब के समक्ष समझाया कि "तुम आराम से बैठो, यहां तुम्हारी दाल न गलेगी। क्योंकि मैं यहां हमेशा व्याख्यान सुनता हूँ। आपमें किसी प्रकार का दोष नहीं है, किसी किस्म का लालच नहीं है। केवल परोपकार के लिये ही आपने यह बाना धारण किया है। तुम इस छिद्रान्वेषण को छोड़ धर्मोपदेश सुनने के लिए बैठो तो तुम्हारा कल्याण हो जाय।" गुप्तचरों ने स्वीकार किया और आपकी मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करके रवाना हुए। ... संवत् १९६५ वैशाख सुदी ६ को गुजराँवाला में आचार्य श्री विजयकमलमूरिजी महाराज की उपस्थिति में
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