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( ८३ ) होती है वैसे ही गुजरांवाला के श्री संघ को आचार्य महाराज के पधारने पर प्रसन्नता हुई। शहर में स्थान २ पर सुन्दर दरवाजे बनाये गये और जैन अजैनों की हजारों की संख्या ने आपके प्रवेश के समय आपका अपूर्व स्वागत किया। ___आपने अपने गुजरांवाला में विश्राम के दिनों में अपनी (गुरुकुल फंड में) एक लाख की प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर शुभ मुहूर्त में गुरुकुल की स्थापना की और अपने तब तक मीठा ग्रहण न करने के व्रत को पूरा किया। कहना होगा कि इस शुभ कार्य की पूर्ति में पंन्यासजी ललितविजयजी महाराज के प्रयास ने बहुत काम किया और
आपकी ही प्रेरणा से सेठ विट्ठलदास ठाकुरदासजी (बंबई) ने अपनी लक्ष्मो का सदुपयोग करके यशोपार्जन किया। ... आपकी इस अनूठी भक्ति के उपलक्ष्य में श्री संघ के पास भेंट करने के लिये क्या था ? संघ ने विनीत भाव से आपके उपकारों से किञ्चित् मात्र उऋण होने के अभिप्राय से, आपको 'गुरु भक्त' की और सेठ विट्ठलदासजी को 'दानवीर' की पदवी प्रदान की और चातुर्मास में अनेक श्रावक श्राविकाओं ने उद्यापन कार्य भी किये। ... आपके इस चातुर्मास में जैन संसार को एक महान् हानि भी हुई अर्थात् उपाध्यायजी महाराज श्री सोहन
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