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( ८२ ) किन्तु आप तो वीतराग भगवान् के सच्चे कृपा पात्र थे। भगवद्भक्ति करना ही आपका परम लक्ष्य रहा। आपको यह निश्चय था कि कितना भी उपाय क्यों न किया जाय, कर्मों का फल तो भोगे बिना छुटकारा है ही नहीं। अत: इस चिकित्सा के साथ ही साथ यदि ईश्वर चिन्तन किया जाय तो जो बीमारी महीने से जाने वाली है वह शीघ्र ही चली जायगी। अतः आपने ऐसी रुग्णावस्था में श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान् की छत्र छाया में रह कर माघ महीने में श्री पार्श्वनाथ स्वामी की हिन्दी भाषा में 'पञ्च कल्याणक' पूजा बनाई।
संवत् १९९१ से १९९५ तक ... यह बात तो पहले ही मालूम हो चुकी होगी कि लाहौर में आचार्य पदवी-महोत्सव हो चुकने के कुछ दिन बाद आपने लाहौर से गुजरांवाला की ओर विहार किया। ___बहुत वर्षों के पश्चात् और अब 'जैनाचार्य और पंजाब के जैनों के सिरताज होने के कारण आपका गुजरावाला में जाना हुआ। ऐसे अवसर पर लोगों के उत्साह का अनुमान करना कुछ कठिन नहीं। जैसे दीन-हीन निर्धन को अनायास लक्ष्मी की प्राप्ति पर अपूर्व प्रसन्नता
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