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'आप स्वर्गवासी आत्मारामजी महाराज के सहबास में रह कर उत्तीर्ण हुए हैं। आज मैंने जैसा श्री आत्मारामजी महाराज को सुना था, वैसे ही, बल्कि उससे भी बढ़ कर आपको पाया। आपके वचनामृत पान करने की मेरी अधिक इच्छा थी, परन्तु आप इस समय संघ के साथ हैं इसलिए कुछ विशेष अर्ज नहीं कर सकता। मगर जब आप वापिस पधारें तब ८-१० दिन तक यहां विराज कर अवश्यमेव हमें लाभ पहुँचायें।"
स्वर्गीय आचार्य श्रीमद् विजयानन्द सूरिजी महाराज की उपस्थिति में जितना भी लिखना और कॉपी करने का काम था, वह सब आप करते थे। 'तत्वनिर्णयप्रासाद' की प्रेस कॉपी आपने की थी तथा 'चिकागो प्रश्नोत्तर' की कॉपी भी आप ही के हाथों हुई।
व्यक्तित्व संवत् १९६६ का चातुर्मास डभोई में समाप्त करके आप मियां गाँव पधारे। वहां १०८ श्री हंसविजयजी महाराज का पत्र आपके पास आया, उसमें लिखा था कि "नांदोद महाराज की तर्फ से विनती करने के लिए बक्षी वकील नामक एक सज्जन आये हैं। यदि आप पधारें तो
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