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( ४८ ) बीच में उसका क्या वश चलता ? डाकू उसकी तर्फ फिरे और दूसरे ही क्षण सिपाही बेहोश होकर जमीन पर पड़ा दिखाई दिया। - लुटेरों ने उसकी तलवार और कपड़े छीन लिये। अब आप लोगों की बारी थी। थोड़ोसी भी शान्ति खो देने पर सारा का सारा मामला चौपट होने का डर था। सबसे पहले आपने ही अपनी सारी चीजें एक एक करके उन्हें देदीं। आपकी देखा देखी दूसरे साधुओं ने भी अपनी सारी वस्तुएँ चोरों को दे दी।
उन्होंने सारा सामान देखा । पुस्तकें और पात्र छोड़ दिये और बाकी सारा सामान लेकर चलते बने । जाते समय मुनि श्री विद्याविजयजी, मुनि श्री विचारविजयजी तथा लक्ष्मीचन्द पर वार भी करते गये ।
जब चोर वहां से चले गये। आपने सिपाही की ओर ध्यान दिया। वह बेचारा अबतक बेहोश पड़ा था। समय की बात थी.। आपने अवसर देखा और अपनी तिर्पणी में से पानी लेकर सिपाही के सिर पर डाला और पट्टी भी बाँधी, उसने आंखें खोली।
सि.-"महाराज ! आपने मुझे बचा लिया, वर्ना यहां मेरा कौन था ?"
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