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( ५७ ) "उपाध्याय' पद पर प्रतिष्ठित किया। यह भी योग्य पुरुषं को कदर हो थी।
आपने उस दिन सारे श्री संघ को जो उपदेश दिया था, वह अत्यन्त माननीय है। आचार्य पद हो जाने के बाद अभिनन्दन पत्र, चिहियों और तारों का ताँता बंध गया। सारा जैन समाज आनन्द सागर में मग्न था। आज आचार्य पद देकर जैन समाज अपने को कृत-कृत्य मान रहा था। __आचार्य पदवी और प्रतिष्ठा का सुवर्णावसर आज करीबन ४०० वर्षों से इस लाहौर को पुनः प्राप्त हुआ था। श्री जिनसिंहजी और भानुसिंहजी क्रमशः आचार्य और उपाध्याय पद पर आज से चार सौ वर्ष पहले प्रतिष्ठित हुए थे।
आप सदा से ही स्वभावतः अधिक दिखाव के विरुद्ध हैं। निर्लोभ और सेवामय जीवन ही आपके प्रधान लक्ष्य हैं। आपको इतना ही सम्मान देकर समाज संतुष्ट न था। आप इनसे सर्वदा दूर रहे, फिर भी पंजाबी आपको "पंजाब जैन केसरी” कहते हैं।
संवत् १९६० में श्री बामणवाड़जी तीर्थ पर पोरवाल महा सम्मेलन था और नवपद-ओली-तप-आराधन भी बड़े ठाठ-बाठ धूमधाम से हुवा था। लगभग पन्द्रह हजार जन
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