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कायम हो और उसके निभाव फण्ड के लिए एक लाख रुपया हो जाय तभी मैं मिष्टान्न अङ्गीकार करूँगा वरना गुड शक्कर आदि मीठी चीज़ों का मेरे त्याग रहेगा।"
इस अभिग्रह की चर्चा आपने किसी के पास नहीं की। केवल बम्बई जाते वक्त श्री ललितविजयजी को थोड़ा सा इशारा कर दिया था, परन्तु आपने उसका व्यौरा पूरा पूरा नहीं बतलाया था। .... चातुर्मास समाप्त होने के बाद आपने होशियारपुर से विहार किया। ग्रामानुग्राम विचरते हुए आप लाहौर पधारे। यहां का चातुर्मास समाप्त करके आप गुजरांवाला पधारे। गुजरांवाला श्री संघने आपका बढ़चढ़ कर स्वागत किया। बड़े ठाटबाट के साथ आपका नगर प्रवेश हुआ। नगर प्रवेश के समय अच्छे अच्छे विद्वान, अहलकार, वकील और धनिक आपके स्वागत के लिये आये थे।
आपने अपने वचनामृत से सब को तृप्त किया। मानस वाटिकाकी आशा लताएँ पुनः पल्लवित होने लगीं। आपके उपदेश को सब लोग बड़े चाव से सुनने लगे। _ दिनों दिन आपके प्रति लोगों की भक्ति बढ़ने लगी। उन्होंने चातुर्मास के लिए अर्ज किया। आपका सं० १९८१ का चातुर्मास गुजरांवाला में और श्री पंन्यासजी ललित विजयजी का बम्बई में हुआ।
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