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संख्या उपस्थित थी । वहां शान्तमूर्त्ति योगिराज श्री १००८ श्री विजयशान्तिसूरिजी महाराज भी पधारे हुवे थे। आप भी योगीराज श्री से मिलने पधारे थे। वहां आपके अनिच्छा प्रकट करते हुए भी आपको महासम्मेलन ने "अज्ञान तिमिर तरणि, कलिकाल कल्पतरु” उपाधियां देकर ही दम लिया ।
वास्तव में उपाधियां तो समाज के प्रेम की द्योतक हैं । उनसे महात्मा लोगों को विशेष लाभ कुछ नहीं होता । उपाधियां देकर समाज अपनी तुष्टि मानता है; वही बात यहां भी हुई है। आपके व्यक्तित्व के लिए उपाधियां तो. । कोई मूल्य ही नहीं रखतीं ।
श्री महावीर जैन विद्यालय के लिए
गुजरात, काठियावाड़ और मारवाड़ आदि प्रान्तों में तो जैन धर्म का बोलबाला हज़ारों वर्षों से हो रहा था, और सहस्रों साधु विचरण करके जैन धर्म की ध्वजा फहरा रहे थे, किन्तु पंजाब के लिए ऐसे एक सच्चे साधु की आवश्यकता थी, जो पंजाब के जैन जगत् में सच्चाई का बीजारोपण कर दे ।
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