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अपकारी का उपकार इस मारवाड़ के विहार में आप पर एक विकट घटना घटी। आप मारवाड़ में प्रवेश करने ही वाले थे कि बीजापुर के पास पहाड़ियों की तराई में से होकर कुछ सज्जन निकले। दैव योग ! उस दिन किसी महाजन की बारात उधर से ही जाने वाली थी। यह सारा का सारा भाग पहाड़ी है। भील, मणे आदि जंगली जातियां इसमें रहती हैं। अतः यहां लूट मार का भी बड़ा भय रहा करता है। बारात अभी तक निकलने न पाई थी। उसी की ताक में कुछ मैणे भी एक जगह छिपे बैठे थे। आपके साथ कुल पांच साधु और एक श्रावक तथा एक सिपाही था । लुटेरों को क्या? उन्होंने आकर आपको घेर लिया “जो कुछ हो रख दो" गरजते हुए उनके मुखिया ने कहा।
"भाई ! हम साधु हैं, हमारे पास क्या है ?" शान्त किन्तु गम्भीर बाणी में आपने कहा। किन्तु वे 'शिकार' को कब जाने देने वाले थे। आप का प्रभाव तो पड़ा, वे कुछ नम्र हुए, किन्तु उनमें से कुछ साथी चिल्लाने लगे। "जो कुछ है, शीघ्र रख दो। हम नहीं मानेंगे, मुहूर्त खाली नहीं जाने देंगे। न मानोगे तो मारपीट कर ले जायेंगे।"
साथ के राजपूत सिपाही से यह बात सहन न हुई। उसने रक्षार्थ तलवार निकाली, किन्तु उतने डाकुओं के
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