________________
( ५३ )
उनको पंन्यास पदवी से अलंकृत किया। उस समय आप भी सादड़ी से बाली पधारे आपके पधारने से पदवी प्रदान की शोभा हजार गुनी बढ़ गई। ... आप सादड़ी से विहार कर इसी प्रॉन्त में और भी वर्ष भर विचरते रहे। साढ़े तीन लाख रुपये का शिक्षोपयोगी फंड जमा हो गया। फिर आप बीकानेर पहुँचे । इस चौमासे में आपने भगवती सूत्र की कथा की और सकल संघकी तथा विशेषतः वृद्ध सेठ शिवचंदजी सुराणा की आशा फलीभूत हुई। प्रातः समय आप व्याख्यान में भगवती सूत्र बांचते और मध्याह्न काल में श्री पंन्यासजी ललित विजयजी आदि को भगवती की वाँचना देते। आपके इस चातुर्मास से पहले इसी बीकानेर में आपके शिष्य रत्र पंन्यासजी श्री सोहनविजयजी, मुनि श्री समुद्रविजयजी तथा मुनि श्री सागरविजयजी ने चातुर्मास करके शिक्षा के लिए करीबन डेढ़ लाख रुपये का फंड कराया था, उसको इस चातुर्मास में बहुत पुष्टि मिली। चातुर्मास समाप्त करके आप पंजाब की ओर पधारे। जब आप पंजाब के सीमावर्ती "डभवाली' गांव में पहुंचे तो वहां पंजाब का सकल श्री संघ आपकी सेवा में उपस्थित हुआ। ये दिव्य घटनाएँ और अलौकिक धर्म प्रभावनाएँ जिन्होंने देखी हैं वे ही आप श्रीजी के प्रौढ़ पुण्य का अनुमान कर सकते
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org