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छिपी हुई पंक्ति ज़ाहिर हो गई। पूजा का पाठ सब को दिख गगन मंडल गूंज
से पुस्तक खींच ली । श्रम का पर्दा दूर हो गया। लाया गया। आपके जय-जय कार से उठा । चारों ओर धाक जम गई । १६३० की है ।
यह घटना संव
इस प्रकार का एक चैलेञ्ज एकवार फिर मिला आपका पूज्य सोहनलालजी से हो मुकाबिला बार बार होता रहा । सामने हुई चर्चा के फल स्वरूप विरोध की आग और बढ़ी। आप वहां से विहार कर नाभा पहुँचे। नाभा में आपकी कीर्त्ति पहले से ही पहुँच चुकी थी अतः सर्व साधारण की ओर से आपका बड़े सम्मान से
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प्रवेश हुआ । वहां के महाराजा साहिब श्रीयुत् १००८ श्री होरासिंहजी बहादुर बड़े धर्म प्रेमी और न्यायी थे । साधु सन्तों पर उनकी बड़ी भक्ति थी । इसके अतिरिक्त महा राजा साहिब के प्राइवेट सैक्रेटरी श्रीयुत् जीवारामजी ( अग्रवाल) आपके पूरे भक्त थे। जब उन्होंने आपके आग मन की सूचना पाई तो आपको सादर आमंत्रित किया आप राज सभा में पधारे। नरेश ने आपको बड़े सम्मान से उच्चासन पर बिठाया । आपसे वार्तालाप कर बड़े प्रसन्न हुए
संयोग की बात है कि पूज्य सोहनलालजी भी नाभा पधारे । पूज्य सोहनलालजी ने वहाँ भी बहुत दूर की
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