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भी आपको मिले । इन दिनों गुजरांवाले में खूब नोटिस पर नोटिस निकलते थे। रोज शास्त्रार्थ होते थे। सब से बड़े शास्त्रार्थ का दिन निश्चित करके आपको पत्र लिखा गया था। हिन्दुओं की ओर से पं० भीमसेन शर्मा, विद्यावारिधि पं० घालाप्रसादजो मिश्र, पं० गोकुलचंदजी आदि तथा श्वेताम्बरों की ओर से पं० ललितविजयजी गणी, यतिजी श्रीकेसरऋषिजी, पं० वजलालजी शुक्ल इत्यादि थे।
जेठ का महीना था। बिनौली से गुजरांवाला लग भग ३५० मील होता है । सवारी पर चढ़ना तो निषिद्ध ही था। अस्तु आपने विहार करने का निश्चय किया। ___ आपने अपने परम भक्त, धर्मवीर जैन समाज के चमकीले सितारे मुनि श्री सोहनविजयजी* से जो कि उस वक्त आपकी सेवा में थे, पूछा। वे तो खुद साहस की मूर्ति थे ही। उन्होंने हाथ जोड़ अर्ज की "गुरुदेव ! सेवक आपकी इच्छा के आधीन है, जिधर आप पधारेंगे . * आप पहले स्थानकवासी साधु थे। वसंतामलजी नाम था। गुणी और विवेकी भी अच्छे थे। इन्होंने विचारा कि सत्य वस्तु को स्थानकवासी छिपाते हैं, और मुझे सत्य वस्तु की खोज करनी है, तब अपने संप्रदाय के अच्छे वृद्ध साधुओं से शङ्काओं का समाधान न पाकर हमारे चरित्र नायक के शिष्य होगए । नाम आपका सोहनविजयजी रक्खा गया। ..
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