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टेलीग्राम भी थे । जनता ने आकर कहा, बाबूजी ! पोष्ट ऑफिस खोलो । बाबूजी ने जवाब दिया भाई ! अब तो बाबाजी महाराज ऑफिस खुलायेंगे तो ही खुलेगा । हमारा तो एक ही सिद्धान्त है:
बैठे हैं तेरे दर पर कुछ करके उठेंगे । या वस्ल ही हो जायगा या मर के उठेंगे ॥ दैवयोग ! इन्द्र महाराज ने मेहर को । दृष्टि शुरु हो गई और ३-४ दिन झड़ो लगो रही । प्रायः लोगों की आशाएँ सफल हुई। रास्ते में कीचड़ होजाने से आपका रावलपिंडी पिंडदादन खाँ जाना न हो सका ।
राम नगर में मास कल्प पूरा करके आप अकालगढ़ शहर पधारे । यद्यपि वहां श्रावक की सिर्फ एक ही दुकान थी तथापि सारा ही शहर आपके गुणों का रागी था। बड़ौदे के सुप्रसिद्ध झवेरी नगोनभाई आदि कुछ सज्जन आपके दर्शनार्थ अकालगढ़ आये । आपके पास छोटे साधु बैठे स्वाध्याय कर रहे थे, आगन्तुक सज्जन आपके भक्त थे, तथा सांसारिक संबन्धी भी थे। उनके मन में आया कि श्री वल्लभविजयजी महाराज जैसे लब्ध प्रति मुनिराज के साथ यदि कुछ वृद्ध साधु महाराज भी होते तो सोने में सुगन्धी जैसा काम हो जाता। यह संकल्प विकल्प उनके मन में हो ही रहे थे, इतने में श्रो
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