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( ४४ ) जरासी देर के लिए स्थगित किया और फरमाया-"मैंने जो विषय लिया है उसे पूर्ण करने के लिये काफी समय चाहिये किन्तु लाचारी है। सभा में उपस्थित साधु साध्वी रात्रि में जल पान नहीं करते, अतः इस विषय की फिर किसी समय चरचा को जानी उचित है।" .
यह सुनते ही महाराज संपतराव गायकवाड़, जो श्री सयाजी महाराज गायकवाड़ के छोटे भाई थे, खड़े हुए
और नम्र भाव से बोले। "गुरु महाराज ! श्री साधु और साध्वीजी महाराज जैसे जल के प्यासे हैं, वैसे हम लोग आपके वचनामृत के प्यासे हैं। इस वक्त जो अविछिन्न धारा चल रही है। यह टूट गई तो ऐसा समय फिर न मिलेगा। अतः हमारी प्रार्थना है पूज्य साधु महाराज एवं साध्वीजी महाराज अपने २ उपाश्रय पधारें और जल पान करें।" यद्यपि उस समय आपको आहार नहीं करना था तथापि सूर्यास्त का समय निकट था, अतः आप को विवश व्याख्यान बंद करना पड़ा।
आप श्रीजी का गुजरात पधारना शुक्ति को स्वाती के योग के समान था। जिस वक्त हर एक नगर व ग्राम के लोग आपके दर्शनों के लिये आतुर हो रहे थे उस वक्त बंबई का श्रीसंघ भी आपके दर्शनों के लिये लालागित था। आपका वहां पधारना हुआ। श्रीसंघ ने आकर चरणों में
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