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निश्चित भेंट दी जाया करे। मन्दिर आदि की तरह शिक्षा के लिए भी दान दिया जाया करे ।"
इधर यह कार्य होता रहा, दूसरी तरफ आपके सदुपदेश से निम्न लिखित दीक्षा महोत्सव भी हुये । नारोवाल में सं० १६५४ में मुनि श्री ललितविजयजी की दीक्षा हुई ।
सं० १६५५ में श्री साध्वीजी देवश्रीजी की दीक्षा जंडियाले में हुई ।
सं० १६५७ में साध्वीजी श्री दानश्रीजी दयाश्रीजी की दीक्षाएँ हुशियारपुर में हुई ।
सं० १६६०-६१ में भी अनेक साधुओं को दीक्षा दी। इधर गुजरात प्रान्त में दसाड़ा गाँव में आपके परम भक्त शिष्य मुनि श्री सोहनविजयजी की दीक्षा आप श्रीजी के नाम से हुई ।
सर्व साधारण को व्याख्यानामृत पान कराते हुवे श्री आत्मानन्द जैन पाठशाला और श्री आत्मानन्द जैन सभा की जड़ें पुष्ट करते हुए आप सारे पंजाब में बिहार करते रहे ।
पंजाब प्रान्त में जैनों के घर योंही कम हैं, उस पर भी मतों की फूट के कारण विहार की असुविधाएँ कभी २ बहुत ही बढ़ जाती थीं, किन्तु आपका लक्ष्य गुरु वचन को
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