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( २६ ) महाराज श्री विजयकमलमूरिजी के बहुत समझाने बुझाने पर आपने जुलूस के साथ नगर में प्रवेश करना मंजूर किया।
बड़े उत्साह के साथ नगर प्रवेश हुआ। जिस कलह को शान्त करने के लिए आप पधारे थे, वह आपके आगमन के पूर्व ही शान्त हो गया था। आप को केवल व्याख्यान का ही अवसर प्राप्त हुआ।
आपने वहां 'विशेष नर्णय' और 'भीमज्ञान त्रिशिका' नामक दो पुस्तकें लिखीं जिनमें आपके हिन्दू धर्म शास्त्रों के गहन अध्ययन की पूरी झलक दिखाई देती है।
बिनौली से गुजरांवाला जाने में वहां भड़कती आग को शान्त करना एवं जैन धर्म और सनातन धर्म में फैले हुए क्लेश को शान्त करना यह तो आपका मुख्य उद्देश्य था ही, किन्तु एक बात और भी थी कि वृद्ध साधु महाराज आचार्य श्री विजयकमलमूरिजी और उपाध्यायजी श्री वीरविजयजी महाराज का श्री आत्मारामजी महाराज के स्वर्गस्थ होने के बाद पंजाब में यह पहला हो आगमन और चातुर्मास था। उनकी उपस्थिति में दोनों संप्रदायों में वैषम्य बढ जाय और सैंकड़ों वर्षों तक बना रहे, इसे आप उन वद्ध मुनिवरों के नाम के साथ कलंक समझते थे। उनकी मौजूदगी में हो दोनों पक्षों का समाधान होजावे और शांति फैल जाय, इसो में उन वृद्ध पुरुषों
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