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( २३ )
आत्मारामजी महाराज साहिब की पुस्तक के विरुद्ध हल्ला फैलना प्रारंभ हुआ । गुंजरांवाला और कई स्थानों पर ऐसे व्याख्यान हुए, जिनमें जैन धर्म तथा श्री आत्मारामजी की त्रुटियाँ बतलाई जाने लगीं। आप उन दिनों बिनौली (मेरठ) में विराजमान थे । एक सभा गुजरां वाला में भी हुई। जैन और सनातन धर्मी भाइयों में परस्पर इतना विरोध बढ़ा कि वे एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हो गए। जैनी लोग अस्सी घर की संख्या में थे और सामने प्रतिपक्षी ४५००० की संख्या में थे । उस विरोध ने ऐसा भयानक रूप पकड़ा कि गुजरांवाले के जैन समाज को अपने घरों में रहना मुश्किल हो गया । उस वक्त एक ऐसे विद्वान् अनुभवी गंभीर और अवसराज्ञ महात्मा की ज़रूरत थी, जो सत्य वस्तु दिखला कर दोनों पक्षों को शान्त करता । आप पर सब को विश्वास था । आप ही इस संकट से संघ की रक्षा कर -सकते थे। गुजरांवाला श्रीसंघ और आचार्य श्री १००८ - श्रीमद् विजय कमलसूरिजी महाराज के पत्र आपके पास पहुँचे । उनमें मुख्य बात यही थी, "यहां बड़ा उत्पात मच रहा है । यह तुम्हारे आने से ही शान्त होगा । जैन धर्म की रक्षा के लिए तुमको अवश्य और शीघ्र आना चाहिए ।" इसके अतिरिक्त शीघ्र आने के लिए २ तार
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