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( १४ ) बड़ी दीक्षा के पूर्व ही व्याख्यान देकर अपनी व्याख्यान शक्ति का भी परिचय दे दिया था।
संवत् १६४६ में पाली मारवाड़ में योगोदहन की क्रियाएँ कराके, आप को योग्य देखकर, नियमानुसार बड़ी दीक्षा भी दे दी गई। इस अवसर पर सात और साधुओं को भी बड़ी दीक्षा दी गई थी। यह चौमासा पाली में ही हुआ।
गुरुदेव की अस्वस्थता के कारण आपका अध्ययन यहाँ भी कुछ सन्तोषप्रद नहीं हो सका। किन्तु गुरुभक्ति में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले आप अपने अध्ययन की चिन्ता कब करने वाले थे? गुरुसेवा में दत्त चित्त होकर लगे रहे। "गुरु प्रत्यक्ष देवता है, उसके बिना अन्धकार है, संसार विचलित होजाय किन्तु गुरु-वचन विचलित होता हो नहीं" यह आपका अब भी अटल सिद्धान्त है।
पंजाब के जैन समाज में जागृति का शंखनाद करने वाले पूज्यपाद आत्मारामजी महाराज ने आपको अब अपना दाहिना हाथ बना लिया था। सारे पंजाब में आचार्य श्री ने आपको अपना कार्य संभालने वाला प्रसिद्ध भी कर दिया था। तत्वनिर्णयपासाद, चिकागो प्रश्नोत्तर आदि पुस्तकों के लिखने में आपका आचार्य देव को बड़ा
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