Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
- पुद्गल स्कन्धों की अनन्तता के कारण मूल पाठ में बहुवचन का प्रयोग हुआ है। एक मात्र पुद्गल द्रव्य ही रूपी अजीव है। ये पुद्गल पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस, आठ स्पर्श और पांच संस्थान के रूप में परिणत होते हैं। प्रज्ञापना सूत्र में इन वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान के पारस्परिक संबंध से बनने वाले विकल्पों (भंगों) का वर्णन किया गया है। रूपी अजीव के ५३० भेद इस प्रकार हैं - .
परिमण्डल, वट्ट (वृत्त), त्र्यस्र (त्रिकोण), चतुरस्र (चतुष्कोण) और आयत, इन पांच संस्थानों के पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श, इन बीस की अपेक्षा प्रत्येक के २०-२० भेद हो जाते हैं। इस प्रकार संस्थान के १०० भेद (५४२०=१००) होते हैं।
काला, नीला, लाल, पीला और सफेद, इन पांच वर्गों के १०० भेद होते हैं। काला, नीला आदि प्रत्येक वर्ण में पांच रस, दो गंध, आठ स्पर्श और पांच संस्थान ये बीस-बीस बोल पाये जाते हैं। इस प्रकार पांच वर्षों के (५४२०-१००) सौ भेद होते हैं।
सुरभिगंध (सुगंध) और दुरभिगंध (दुर्गन्ध) इन दो गंधों के ४६ भेद होते हैं। प्रत्येक गंध में ५ वर्ण, ५ रस, ८ स्पर्श और ५ संस्थान, २३-२३ बोल पाये जाते हैं। इस प्रकार दो गंधों के ४६ भेद होते हैं।
तिक्त (तीखा), कट (कड़वा), कषाय (कषैला). खद्रा और मीठा. इन पांच रसों में प्रत्येक में ५ वर्ण, २ गंध, ८ स्पर्श और ५ संस्थान, ये बीस-बीस बोल पाये जाते हैं। इस प्रकार पांच रसों के (५४२०=१००) सौ भेद होते हैं।
कर्कश (कठोर), मृदु (कोमल), हल्का, भारी, शीत, उष्ण, स्निग्ध (चिकना) और रूक्ष (रूखा) इन आठ स्पर्शों के १८४ भेद होते हैं। प्रत्येक स्पर्श में ५ वर्ण, ५ रस, २ गंध, ६ स्पर्श (आठ में से एक स्वयं और एक विरोधी स्पर्श को छोड़कर) और ५ संस्थान ये २३-२३ बोल पाये जाते हैं। इस प्रकार आठ स्पर्शों के (८x२३-१८४) एक सौ चौरासी भेद होते हैं।
इस प्रकार संस्थान के १००, वर्ण के १००, गंध के ४६, रस के १०० और स्पर्श के १८४। ये सब मिला कर रूपी अजीव के ५३० भेद होते हैं।
अरूपी अजीव के ३० भेद इस प्रकार हैं - धर्मास्तिकाय आदि के स्कंध, देश, प्रदेश आदि १० भेद पूर्व में बताये हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और काल इन चारों को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण इन पांच की अपेक्षा पहचाना जाता है। इसलिये इन प्रत्येक के ५-५ भेद हो जाते हैं। इस प्रकार इन चारों के बीस भेद होते हैं। उपरोक्त, दस और ये बीस भेद मिला कर अरूपी अजीव के ३० भेद हो जाते हैं।
रूपी अजीव के ५३० और अरूपी अजीव के ३० भेद मिला कर अजीवाभिगम के ५६० भेद होते हैं। इस प्रकार अजीवाभिगम का वर्णन हुआ।
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