________________ HTRITIG जीव विचार प्रकरण SHARE लोकंतिक देवलोक नौ हैं और वे पांचवें देवलोक के ब्रह्मप्रतर में स्थित हैं। बारहवें अच्युत देवलोक के उपर नवग्रैवेयक देवों के देवविमान स्थित हैं। उनके उपर पांच अनुत्तर देवों के विमान हैं जो समान ऊँचाई पर स्थित हैं। पांच अनुत्तर विमानों में से सर्वार्थसिद्ध विमान मध्य में है, शेष चार अनुत्तर विमान चारों दिशाओं में स्थित है / वे देव, जो तीर्थंकर परमात्मा के च्यवन, जन्म आदि पंचकल्याणक पर उनके खजाने को धन-धान्य, सोना-चांदी आदि से परिपूर्ण करते हैं, वे तिर्यग्नुंभक देव कहलाते हैं। वे भी व्यंतर. वाणव्यंतर देवों के स्थान पर निवास करते हैं। वे देव, जो नारकी जीवों को घोर यातनाएँ देते हैं, परमाधामी देव कहलाते हैं। वे बडे क्रूर, हिंसक और कषायी होते हैं। इन सभी देवों को मुख्य रुप से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है - (1) कल्पोपपन्न देव - जिन देवों में स्वामी-सेवक या राजा-प्रजा का व्यवहार होता है / छोटे-बड़े का व्यवहार होता है, वे कल्पोपपन्न देव कहलाते हैं। भवनपति, परमाधामी, व्यंतर, वाणव्यंतर, तिर्यग्नुंभक वैमानिक, नवलोकांतिक, किल्बिषिक देवों में इस प्रकार की सामाजिक व्यवस्था होती हैं, इस कारण वे कल्पोपपन्न देव कहलाते हैं। (2) कल्पातीत देव - जिन देवों में समानता होती है / सेठ-नौकर जैसी व्यवस्था नहीं होती है, वे कल्पातीत देव कहलाते हैं। नवग्रैवेयक देव एवं पांच अनुत्तर विमान के देव इसी श्रेणी में आते हैं। | देवताओं के भेद जीवों के 563 लेखों में से 198 भेद देवताओं के होते हैं। भवनपति देव परवाधामी व्यंतर देव वाणव्यंतर देव