________________ R जीव विचार प्रश्नोत्तरी RTER वर्ष पूर्ण होने के बाद मनुष्य के अंगुल का जो प्रमाण होता है उसे उत्सेधांगुल कहते है। 3) प्रमाणांगुल- उत्सेधांगुल से हजार गुणा बडे अंगुल को प्रमाणांगुल कहते है। 687) अवसर्पिणी काल एवं उत्सार्पिणी काल किसे कहते है ? उ. जिस काल में जीवों के संघयण, संस्थान, अवगाहना, आयुष्य, कर्म, बल, पराक्रम, . रूप, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि हीन होते जाते हैं, उसे अवसर्पिणी काल कहते है। . जिस काल में संघयण, संरः / , अवगाहना, आयुष्य, कर्म, बल, पराक्रम, रूप, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि में वृद्धि होती है, उसे उत्सर्पिणी काल कहते है। 688) अवसर्पिणी के आरों की विशेषता बताओ ? . उ. 1) सुषम सुषमा- यह आरा 5 कोडाकोडी सागरोपम का आरा होता है। मनुष्यों का आयुष्य तीन पल्योपम का होता है और अवगाहना तीन कोस की होती है। मातापिता का आयुष्य जब छह मास का शेष रहता है तब एक युगल (बालक-बालिका) का जन्म होता है, वे युगलिक कहलाते हैं। माता-पिता उनका 49 दिन तक पालन पोषण करते हैं। जब वे युवा हो जाते हैं तब पति-पत्नी का व्यवहार करने लगते हैं। मरकर देवलोक में जाते हैं। इस आरे में असि-मसि-कृषि का कार्य नहीं होता है। कल्प-वृक्षों से सामग्री प्राप्त करते हैं। तीन-तीन दिन के अन्तराल में तुअर दाने के प्रमाण में आहार ग्रहण करते हैं। इस आरे में सुख ही सुख होने-इसे सुषम-सुषमा कहा जाता है। इस आरे के मनुष्यों में पहला संघयण और पहला संस्थान होता है। 2) सुषम- इस आरे में पहले आरे की अपेक्षा सुख कम होता है पर दुःख का पूर्णतया अभाव होता है। अवगाहना दो कोस की, आयुष्य दो पल्योपम का होता है। यह आरा तीन कोडाकोडी सागरोपम का होता है। माता-पिता युगलिकों का पालन पोषण 64 दिन तक करते हैं। दो दिन के अन्तर में बोर के प्रमाण में आहार ग्रहण करते है। शेष बातें प्रथम आरे के समान होती है। 3) सुषम दुषम- इस आरे में दुःख होता है पर उसकी अपेक्षा सुख ज्यादा होता है। यह आरा दो कोडाकोडी सागरोपम का होता है / इस आरे के तीन भाग होते है। प्रथम दो भागों में उत्पन्न हुए युगलिकों की अवगाहना एक कोस की, आयुष्य एक पल्योपम