Book Title: Jeev Vichar Prakaran
Author(s): Manitprabhsagar
Publisher: Manitprabhsagar

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Page 296
________________ PRASTERTIST जीव विचार प्रश्नोत्तरी 781) मान कषाय किसे कहते है ? उ. अनुकूलता प्राप्त होने से ज्ञान, ऐश्वर्य आदि पर मोहनीय कर्म के फलस्वरुप अहंकार - गर्व करने रुप आत्मा का परिणाम मान कषाय कहलाता है / 782) माया कषाय किसे कहते है ? उ. किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिये मोहनीय कर्म के फलस्वरुप मन-वचन-काया की कुटिलता एवं दूसरों को ठगने रुप आत्मा के परिणाम को माया कषाय कहते है / 783) लोभ कषाय किसे कहते है ? उ. इष्ट वस्तु (धन, सत्ता, सम्पत्ति आदि) के प्रति अभिलाषा मूर्छा, ममता रुप आत्मा __ के परिणाम को लोभ कषाय कहते है। . 784) लेश्या किसे कहते है ? उ. जिससे जीवात्मा के साथ कर्म पुद्गल चिपकते हैं, उसे लेश्या कहते है / 785) लेश्या कितने प्रकार की होती हैं ? उ. छह प्रकार की - (1) कृष्ण (2) नील (3) कापोत (4) तेजो (5) पद्म (6) शुक्ल / 786) कृष्ण लेश्या किसे कहते है ? उ. अति विकृत कर्म पुद्गलों के कारण आत्मा में जो हिंसा, क्रूरता, रौद्रता के परिणाम ___ उत्पन्न होते हैं, उसे कृष्ण लेश्या कहते है / 787) नील लेश्या किसे कहते है ? उ. विकृत कर्म पुद्गलों के कारण आत्मा में जो माया, इर्ष्या, घृणा, द्वेष आदि के परिणाम उत्पन्न होते हैं, उसे नील लेश्या कहते है / 788) कापोत लेश्या किसे कहते है ? उ. अल्प विकृत कर्म पुद्गलों के कारण आत्म में जो अभिमान, जडता, वक्रता और कठोरता के परिणाम उत्पन्न होते हैं, उसे कापोत लेश्या कहते है / 789) तेजो लेश्या किसे कहते है ? उ. शुभ कर्म पुद्गलों के कारण आत्मा में जो पापभीरुता, विनय और प्रेम के परिणाम

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