Book Title: Jeev Vichar Prakaran
Author(s): Manitprabhsagar
Publisher: Manitprabhsagar

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Page 281
________________ STREETHARE जीव विचार प्रश्नोत्तरी ESTABLETES श्रावण वदि प्रतिपदा को अभिजित नक्षत्र में चन्द्रमा आने पर उत्सर्पिणी काल के प्रथम आरे का प्रारंभ होता है / वर्ण, रस, स्पर्श, स्थिति, अवगाहना में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। 2) दुषम- अवसर्पिणी के पांचवें आरे जैसा यह दूसरा आरा इक्कीस हजार वर्ष का होता है। इस आरे में सात-२ दिन तक पांच मेघ बरसते हैं१) पुष्कर संवर्तक मेघ- इससे अशुभ भाव, रूक्षता, उष्णता आदि नष्ट हो जाती हैं। 2) क्षीर मेघ- शुभ वर्ण, गंध, रस, स्पर्श की उत्पत्ति होती है। .. 3) घृत मेघ- भूमि में स्नेह (चिकनाहट) की उत्पत्ति होती है। 4) अमृत मेघ- वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता आदि के अंकुर प्रस्फुटित होते हैं। 5) रस मेघ- इससे वनस्पतियों में फूल, फल, पत्ते आदि की वृद्धि होती हैं। भूमि हरी-भरी और रमणीय हो जाती है। उस समय बिलवासी लोग अपने-२ बिल से बाहर निकलकर नृत्य करके अपना आनंद अभिव्यक्त करते हैं। फूल, फल से निर्वाह प्रणाली समझकर वे सभी मांसाहार का त्याग कर देते हैं। मनुष्यों के अतिम संघयण-संस्थान होता हैं। आयुष्य जघन्य अन्तर्मुहूर्त का और . उत्कृष्ट साधिक सौ वर्ष का होता है / जीव कर्मानुसार चारों गतियों में जाते हैं पर मोक्ष में नहीं जाते हैं। 3) दुषम सुषम- यह आरा बयालीस हजार वर्ष न्यून एक कोडाकोडी सागरोपम का होता है / अवसर्पिणी के चौथे आरे के समान इसका स्वरूप है। 4) सुषम दुषम- इसे अवसर्पिणी के तीसरे आरे के समान समझना चाहिये। 5) सुषम- इसे अवसर्पिणी के दूसरे आरे के समान समझना चाहिये। 6) सुषम सुषम- इसे अवसर्पिणी के पहले आरे के समान समझना चाहिये। 690) कर्मभूमियों और अकर्मभूमियों में आरों के क्या भाव रहते हैं ? उ. देवकुरू और उत्तरकुरू क्षेत्र सुषम-सुषम आरे जैसा हरिवर्ष और रम्यक् क्षेत्र सुषम आरे जैसा हैमवन्त और हैरण्यवंत क्षेत्र सुषम दुषम आरे जैसा

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