________________ REPREHER जीव विचार प्रकरण ARTIETARIATE शब्दार्थ शब्दार्थ एगिंदिया - एकेन्द्रिय जीव य - और सव्वे - समस्त असंख - असंख्य उस्सप्पिणी - उत्सर्पिणी सकायम्मि - स्वयं की काया में उवजन्ति - उत्पन्न होते हैं चयन्ति - मरते हैं य - और अणंतकाया - अनन्तकायिक जीव अणंताओ - अनंत (साधारण वनस्पतिकाय) भावार्थ सभी एकेन्द्रिय जीव अपनी काया में असंख्य उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी तक एवं अनन्तकायिक जीव अपनी काया में अनंत बार जन्म लेते हैं और मृत्यु को प्राप्त होते हैं। . विशेष विवेचन . . प्रस्तुत गाथा में एकेन्द्रिय जीकों की स्वकाय स्थिति का उल्लेख किया गया है / * पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और प्रत्येक वनस्पतिकाय के जीव असंख्य अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी तक उसी काया(पर्याय) में जन्म-मृत्यु को प्राप्त होते हैं। * अनन्तकाय (साधारण वनस्पतिकाय) के जीव अनन्त काल चक्र तक अनंतकाय में जन्म लेते हैं और मृत्यु को प्राप्त करते हैं। उसी काया में जन्म लेने का अर्थ उसी शरीर को उपलब्ध करना नहीं है, उसी पर्याय * को प्राप्त करने से है / जैसे पृथ्वीकाय के जीव मरकर उसी शरीर में नहीं, पृथ्वीकाय की पर्याय को असंख्य उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी तक प्राप्त करता है / * उत्पसर्पिणी-अवसर्पिणी से आशय दस कोडा-कोडी सागरोपम की एक उत्सर्पिणी होती है और उतने ही काल की एक अवसर्पिणी होती है / 20 कोडाकोडी सागरोपम अर्थात् एक उत्सर्पिणी और एक अवसर्पिणी का एक कालचक्र होता है। .