________________ SHARE जीव विचार प्रकरण ARTISTER विकलेन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय जीवों की स्वकाय स्थिति गाथा संखिज्ज-समा विगला, सत्तट्ठ-भवा पणिंदि-तिरि मणुआ / उववज्जन्ति सकाए नारय-देवा य नो चेव // 41 // . अन्वय विगला संखिज-समा पणिंदि-तिरि मणुआ सत्तट्ठ भवा सकाए उववज्जन्ति नारय य देवा नो चेव // 41 // संस्कृत छाया . - संख्येय समान् विकला: सप्ताष्ट भवान् पंञ्चेन्द्रियतिर्यगमनुष्यः। उत्पद्यन्ते स्वकाये नारका देवा न चैव // 41 // शब्दार्थ संखिज्ज - संख्याता समा - वर्ष विगला - विकलेन्द्रिय सत्तट्ट - सात - आठ भवा - भव पणिंदि - पंचेन्द्रिय तिरि-तिर्यंच मणुआ - मनुष्य उववजन्ति - उत्पन्न होते हैं सकाए - स्वकाय में नारय - नारकी देवा - देवता .. य - और नो - नहीं चेव-ही भावार्थ विकलेन्द्रिय जीव संख्यात वर्षों तक, पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य सात या आठ भवों तक स्वकाय में उत्पन्न होते हैं। नारकी और देवता अपनी काया में उत्पन्न नहीं होते हैं // 41 // विशेष विवेचन इस गाथा में विकलेन्द्रिय जाति के जीवों की तथा पंचेन्द्रिय मनुष्य - तिर्यंच- देव और