________________ / PRINEETISASTERT जीव विचार प्रकरण E NTERTAINS संस्कृत छाया सिद्धानां नास्ति देहो नायुः कर्म न प्राणयोनयः / साद्यनन्ता तेषा स्थितिर्जिनेन्द्रागमे भणिता // 48 // शब्दार्थ सिद्धाणं - सिद्धों को नत्थि - नहीं है देहो - शरीर, काया न - नहीं आयु - आयुष्य कम्मं - कर्म न - नहीं पाण - प्राण जोणीयो - योनियाँ साइ - सादि अणंता - अनन्त तेसिं - उनकी ठिई - स्थिति, काल जिणिंदागमे - अरिहंत प्ररुपित आगमों में भणिया - कही गयी है। , भावार्थ सिद्धों के शरीर नहीं है, आयुष्य एवं कर्म नहीं है, प्राण एवं योनियाँ नहीं है / श्री जिनेन्द्र (तीर्थंकर) प्ररुपित आगमों में उनकी स्थिति सादि अनन्त कही गयी है // 48 // विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में सिद्धात्माओं के संदर्भ में पांच द्वारों का कथन है / * अवगाहना - सिद्ध भगवंत जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर सिद्धालय में बिराजमान हो गये हैं। संसार में संसरण करने वाले जीवों के ही शरीर होता है / नाम कर्म के कारण जीव विभिन्न शरीर प्राप्त करता हैं, चारों गतियों मे भटकता हैं पर सिद्ध भगवंत के नाम कर्म का संपूर्ण क्षय होने से देह से वे मुक्त होकर मोक्ष में स्थित हो गये है। इसलिये उनके देह नहीं है और जब देह नहीं है तो अवगाहना कैसी! आयुष्य - काल हमेशा शरीर का होता है, बाह्य पदार्थों का होता है / आयुष्य कर्म के आधार पर जीव आता है और आयुष्य पूर्ण होने पर चला जाता है / सिद्ध भगवंतों के