________________ READSENTERTISTS जीव विचार प्रकरण MERESENTS गहणम्मि - गहन, पीडा युक्त / भीसणे - भयंकर इत्थ - इस (संसार) में भमिया - भ्रमण किया हैं भमिहिंति - भ्रमण करेंगे चिरं - लम्बे काल तक जीवा - जीव जिण - जिनेश्वर, जिन वयणं - वचन को अलहंता - न पाये हए भावार्थ श्री जिनेश्वर देव के वचन (धर्म) को न पाये हुए जीव अनादि - अनन्त काल से दुःख युक्त योनियों के द्वारा इस भयंकर संसार में भ्रमण कर रहे हैं और बहुत काल तक भ्रमण करते रहेंगे // 49 // विशेष विवेचन संसार में व्यक्ति अनादिकाल से भटक रहा है और भटकाव को रोकने का धर्म ही एक मात्र उपाय है / जो धर्म पर श्रद्धा रखता है. और सम्यक्ज्ञान को सम्यक् चारित्र में परिवर्तित करता है, वह मोक्ष में पहुँच जाता है / जो परमात्मा के वचनों पर न तो आस्था रखते हैं, न आचरण मे उतारते हैं, वे जीव अनन्त काल तक संसार में भटकते रहते हैं। उपदेश का कथन गाथा ता संपइ संपत्ते मणुअत्ते दुल्लहे वि सम्मत्ते / सिरि-संति-सूरि-सिट्टे, करेह भो उजमं धम्मे // 50 // .. अन्वय ता संपइ दुल्लहे वि मणुअत्ते सम्मत्ते संपत्ते भो सिरि-संति सूरि-सिटे धम्मे उज्जमं करेह // 50 // संस्कृत छाया . .. . ततः संप्रति संप्रासे मनुष्यत्वे दुर्लभेऽपि सम्यक्त्वे // श्री शांतिसूरि शिष्टे कुरूत भो उद्यमं धर्मे // 50 //